आज मन मेरा अनमना सा है-
जानें क्यों उद्विघ्न है यह,
डरा सा है, सहमा सा है,
याकि भरमाया सा है।
बहुत कुछ सोचता है, फिर भी अलसाया सा है,
न कुछ करता है न करने देता है,
बस कुछ किताबें कई बार पढ़ता है।
न जाने प्रश्न ढूंढता है या उत्तर,
किन्तु हाँ ऐसा बार-बार करता है।
कहीं ऐसा तो नहीं, कर्तव्य-बोध से डरा सा है,
याकि कर्तव्य के बोझ से दबा सा है,
या शायद अब भी कुछ निष्कर्स बचा है-
कि ये तो अभी बच्चा सा है...।
ज़िन्दगी के सफ़र में कई पड़ाव देखे है इसने,
कभी तो कर्तव्य-पथ से डिगा नहीं,
फिर क्यों आज इतना घबराया सा है?
कोई तो अनजाना सा है,
जिसका कि ये एहसास गुनगुना सा है,
शायद कुछ अनसुना सा है,
याकि कोई घाव दे रहा अपना सा है?
आज मन मेरा अनमना सा है,
शायद कारण ही इसका अनगना सा है,
आज मन मेरा अनमना सा है।
- अभिषेक तिवारी।