उधेड़बुन में हूँ कि क्या मिलना भी उतना ही रोमांचकारी होता होगा,
जितनी कि कल्पनाएँ होती हैं।
चकोर को चाँद मिल जाए तो क्या होगा ?
शायद कुछ नए प्रतिमान बनेंगे।
परंतु क्या ये प्रतिमान चकोर की वर्षों से की तपस्या से न्याय कर सकेंगे ?
क्या सुदूर चाँद के प्रति चकोर के उस निश्छल प्रेम को मिलन के प्रतिमानों में बाँधा जा सकता है ?
मिलन प्रेम की परिणति हो ही नही सकती
तभी तो राधा-कृष्ण ने चाँद-चकोर ही रहना स्वीकार कर लिया।
सीता ने भी राम से अलग होकर ही अपने प्रेम को अमर किया।
प्रेम में मिलन तो एक आकांक्षा मात्र है, एक अनन्त की भाँति, जिसे मिलन के प्रतिमानों में बाँधा ही नही जा सकता।
प्रेम अनन्त है और यदि प्रेम की परिणति मिलन है,
तो वो कैसा अनन्त जिसका अंत मिल गया हो।
- अभिषेक तिवारी।
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