क्या हाल भाई लोग, सब ठीक - ठाक ?
अबे यार तुमलोगों को कुछ बताना था बे- साला सोचे थे, सबसे पहले बाहर निकल रहे हैं, मस्त इंजीनियर डॉक्टर टाइप यो-यो दोस्त बनाएँगे। लेकिन का करें - 'शार्ट हैण्ड जब लिखा लीलारा, तव का करीहें अवधेश कुमारा'।
तुम लोग रह ही गए बे, सही कहें तो पीछा ही नही छुड़ा पाए भाई।
नही, मतलब देखो कौनो साला काम का है ?
सब क्युटिया टाइप हैं, लेकिन पता नही क्यों ये बात साला कौनो और बोल दे तो बर्दास्त से बाहर हो जाता है। मन करता है "रेन कम वॉटर कम" कर दें।
साला बहुत घूमे बे कहाँ - कहाँ नही गए लेकिन घूम फिर के तुम्ही लोगो मे रह गए यार । साला हऊ का कहते हैं - एक्सेंट, तक नही सुधरा जहाँ जाते हैं लोग पूछ देते हैं भाई गोरखपुर साइड के हो क्या ?
शुरू में जब ईगो पे ले लीये थे तब तनी बुरा लगता था कि पहिचाना कैसे बे, बोल तो हम हिन्दीये रहे थे।
लेकिन देखो साला यहां भी खेल गयी किश्मत आज जब कई भाषा पढ़ लिए, अरे भाषा छोड़ो यहां कई सेमेस्टर लिंगविस्टिक पढ़ने के बाद अब लगता है कि यार जो मज़ा खींच के बोलने में हैं उ कहीं और, है नही।
एकाध समय फॉर्मेलिटी में छोड़ दें तो गुरु अब हमशे हो भी न पाएगा।
बड़ा दम लगता है यार बना के बोलने में मज़े नही आता हऊ का कहते हैं फील नही आता, नेचुरल फ्लो नही आता।
आ जिसको ई नेचुरल फ्लो पसन्द नही आता उ हमको पसन्द नही आता।
तुमलोग साला प्यार नही मजबूरी हो बे कोनो और टाइप वालन से ज्यादा जमता ही नही। अउर तुम लोगों से जल्दी खटकता ही नही आ कब्बो खटक जाए साला तो साला डर लगता है अलग से कि बेटा महफील में बहुत मौज ली जाएगी।
और हऊ कहावत 'हम' जोन कहते हैं, "महफील का फूफा होने से अच्छा मजबूरी का गांधी बन जाओ।" बस इसी
का पालन कर के दाब लेना ही बेहतर समझते हैं।
का किश्मत है हमारी, इत्ते रात गए जब दुनिया बाबू सोना कर के सो गई है या सोने वाली होगी तब साला तुम लोग की याद आ रही है, कि कितने बड़े वाले हैं सब
कब्बो नही सुधरेंगे सब।
बेटा आज फ्लो में हैं चाहें जित्ता लिख दें, लेकिन का फायदा किसके लिए लिखें साला पढ़ेगा कौन, जिनको पढना है साला स्क्रोल कर - कर के नीचे खोज रहे होंगे -
"देखबे बे कोनो के बड्डे ह का मोटका बड़ा ढेर लिख देहलस।
ना बे आज-काल ढेर ज्ञान देता उ।
जानत नइखे- ओकर कारे इहे ह।
हाँ उ नशीहत देके दुनिया के अपने सुत्तल होइ।
ई बात सही कहले ह।
का बात कर ताड़े सही में?
फोन करबअ सो।
का फायदा, उठइबे ना करी।
चल सो घरवे ओकरे।
ए मह तोहनी के चला जा तनी हम आवतनी घरवाँ से होके।
तोहरा ढेर कार रहेला, चुपचाप चलअ नाटक न बतियावअ।
हाँ बे चला सो कही घूमे चलेके- पनियहवाँ चले के?
हाँ बे हम आज ले ना गइल बानी ।
तू रहेदअ तोहरे मान के नाही बा।
आज केकर खर्चा बा।
बेटा तोहके बड़ा ढेर फिकर रहता,
का बनवावअ तड़अ?
अभिषेक ,अभिषेक , बाड़ा हो ,केतना सुतबअ ए मह ?
छोटू, छोटू... ,उठ बे, का बाबू रात भर जगाई भइल है का?"
- अभिषेक तिवारी।
Superb...😊😊😊😊
ReplyDeleteलेखन शैली में परिपक्वता आ रही है और minuuute observation को अभिषेक की आंखों ने देखना सीख लिया है.....🙏🙏🙏🙏🙏
फिर भी आवश्यकता है एक प्रगाढ़ता की...😊
धन्य हैं हम सब जिन्हें आपसे ये रत्न मिल रहें हैं.....
In the last for aaal my Bakchod friends.... जब तुम होते हो तो शहर में कोई नहीं होता, जब तुम शहर में नहीं होते तो कोई होता.....😊😊😊😊