Sunday, 21 July 2019

तुम मेरी हार हो।

तुम मेरी हार हो
हार हो तुम मेरी
लेकिन तुम्हें हम एकदिन
जीत कर दिखाएँगे
न सोचना तुम कभी
कभी तुम न सोचना
पुनः हम वह प्रणय गीत दोहराएँगे
तुम चली जाना अपने घर को
तुम्हें हम कभी ना बुलाएँगे
तुम्हारे रस्ते के सारे कंटक
हम स्वयं ही हटाएँगे
मुस्कुराती रहो सदा
उसके सारे जतन कर जाएँगे

लेकिन सुनो जब मेरे मन के घाव चिल्लाएँगे
रिस-रिस कर यह मेरे तन को जब पिघलाएँगे
तब तुम्हारी आंखों के आँसू भी न रुक पाएँगे
जीवित तो होगी तुम कहीं
लेकिन चित्त तुम्हारे भी न रह पाएँगे
केवल मेरे ही किस्से और कथानक याद आएँगे
देखना तुम मेरे बाद से प्रेम के सारे मानक बदल जाएँगे
आग मुझ में लगेगी और लोग तुमसे जल जाएँगे
आग मुझ में लगेगी और लोग तुमसे जल जाएँगे
तुम मेरी हार हो, हार हो तुम मेरी
लेकिन तुम्हें हम एकदिन जीत कर दिखाएँगे

-©अभिषेक तिवारी

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