Thursday, 25 July 2019

आस्था और अंधविश्वास

अंधविश्वास का प्रादुर्भाव आस्था से ही हुआ है।
वैसे अंधविश्वासी हम सभी होते हैं अपने माँ, पिताजी, परिवार, गुरुजी के प्रति।
ईश्वर के प्रति आस्था आखिर कहाँ से जगी हमारे मन में सोचा है किसी ने शायद दादी और नानी की कहानियों से या फिर माँ के हर मंदिर और मूर्ति के सामने "भगवान जी को जय करलो" वाले वाक्यों से।
ये घर वालों के प्रति हमारी आस्था थी या अंधविश्वास की उन्होंने जो बताया हमने सच मान लिया। उस समय हम कर भी क्या सकते थे हमारे पास अपना विवेक तो था नही।
अतः बिना विवेक की आस्था ही अंधविश्वास है।
आज भी हम लोग धार्मिक कार्यों में अपना विवेक नही प्रयोग करते या करना ही नही चाहते शायद तर्क से आस्था में चोट पहुँचती है। लेकिन मेरा मानना है कि खूब तर्क करिये अपना विवेक इस्तेमाल करिये याद करिये महाभारत के उस अर्जुन को जिसने कृष्ण को सर्वेस्वर जानते हुए भी तर्क किया और पूरी तरह संतुष्ट हो कर ही उनकी बातों को आत्मसात किया। हमारे पुराण और उपनिषद भरे पड़े हैं ऐसे ही तर्कों से। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से पूर्व उसका कारण जानें अगर आपके विवेक से वह कारण सही है तो आस्था और यदि बिना विवेक इस्तेमाल किये कर रहे हैं तो अंधविश्वास है ।
मेरी आस्था है राम, कृष्ण, महादेव के दिखाए गए रास्तों में उनकी शिक्षा में न कि अंधविश्वास है कुछ लोगो द्वारा उनको प्रसन्न करने के बताये गए तरीकों में।

- अभिषेक तिवारी

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