काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह मनुष्य के स्वाभाविक गुण है परंतु समाज में स्वीकार नहीं तथा इन्हें अवगुण की संख्या दी गई है। इसका कारण यह माना जाता है की इन गुणों के कारण समाज के अन्य लोगों को हानि हो सकती है या किसी के मूल अधिकारों का हनन हो सकता है।
आत्मा के सात मौलिक गुण जो बताए गए हैं पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति व ज्ञान यह मनुष्य के मौलिक गुण है ही नहीं अपितु यह किसी भी एक स्वाभाविक गुण (काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार) के चर्मोत्कर्ष पर जाने अथवा इन पांचो गुणों को पूर्ण रूप से नियंत्रित करने के पश्चात मिलने वाले उपहार हैं।
उपहार प्राप्तकर्ता को तत्वज्ञानी, बोधिसत्व, एनलाइटेंड आदि संज्ञाऐं दी गई है। बड़े - बड़े ऋषि महात्मा, संत,धर्मात्मा, योगी आदि ने अपने स्वाभाविक गुणों पर नियंत्रण प्राप्त कर ये उपहार प्राप्त किया।
अब विडंबना ये है कि कई सारे राक्षस, दानव, दुरात्माओं आदि ने अपने एक ही स्वाभाविक गुण को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाकर यह उपहार सहज ही प्राप्त कर लिए। रावण, दुर्योधन, कंस आदि कई उदाहरण हैं जिन्होंने आत्मा के मौलिक गुणों को प्राप्त किया अर्थात मुक्त हो गए।
आत्मा के मौलिक गुणों (पवित्रता, शान्ति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति व ज्ञान) को प्राप्त कर लेना ही मुक्ति है।
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