छाया,प्रगति,प्रयोग के बाद यह नयी कविताओं का दौर है।
परतंत्रता और गरीबी के बाद यह नयी बुलंदियों का दौर है।
कब का बीत गया वह दावानल फिर भी भोजन देने की नीतियाँ बनाते हैं।
आज हम स्वतंत्र हैं किसी पर किसी का न कोई जोर है।
फिर भी हाय! न जाने क्या हुआ है कि हर तरफ केवल शोर ही शोर है।
पीढियां लड़ती चली आयीं जिनकी अस्मिता के लिए आज हम उन्ही के दामन चुराते हैं।
'गुप्त' की लेखनी ने किये थे प्रस्ताव जो कि जग जाएँ सोये हुए हों भाव जो, आज हम 'फेसबुक' और 'ट्विटर' चलाते हैं, फिर भी न जाने क्यों नित्य नयी-नयी पार्टियों के पेज बनाते हैं।
कभी विषयोत्क्रिष्टता से होती थी विचारोत्क्रिष्टता आज हम विचारोत्क्रिष्टता से उत्कृष्ट विषय बनाते हैं।
परतंत्रता और गरीबी के बाद यह नयी बुलंदियों का दौर है।
कब का बीत गया वह दावानल फिर भी भोजन देने की नीतियाँ बनाते हैं।
आज हम स्वतंत्र हैं किसी पर किसी का न कोई जोर है।
फिर भी हाय! न जाने क्या हुआ है कि हर तरफ केवल शोर ही शोर है।
पीढियां लड़ती चली आयीं जिनकी अस्मिता के लिए आज हम उन्ही के दामन चुराते हैं।
'गुप्त' की लेखनी ने किये थे प्रस्ताव जो कि जग जाएँ सोये हुए हों भाव जो, आज हम 'फेसबुक' और 'ट्विटर' चलाते हैं, फिर भी न जाने क्यों नित्य नयी-नयी पार्टियों के पेज बनाते हैं।
कभी विषयोत्क्रिष्टता से होती थी विचारोत्क्रिष्टता आज हम विचारोत्क्रिष्टता से उत्कृष्ट विषय बनाते हैं।
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