आज देखा मैंने बारिश का आना
गर्म जमीं पे उतर के वह मरहम सा सहलाना
पेड़ पौधों की वो ख़ुशी, पंछियों का वह चहचहाना
आज देखा मैंने बारिश का आना।
किसान के आँखों में चमक सी आ गयी
जो ये देखा कि बदली सी छा गयी
किया था बेसब्र हो कर जिसका इंतज़ार मानो वो घड़ी आ गयी
कुछ सुर्ख हवाएँ चलीं और मौसम में नमी छा गयी
उद्देश्य था इनका सबको कुछ दे जाना
आज देखा मैंने बारिश का आना।
सबकी उम्मीदें पूरी करती इन बूंदों को देखा
बड़ी मस्तमौला बड़ी अविरल हैं ये
न किसी से कोई उम्मीद ना ही है इनकी कोई इच्छा
एक ही ध्येय है औरों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर जाना
फिर भी न जाने क्या-क्या न सुनतीं ये जब भी गलत होता इनका पैमाना।
इन बूंदों से सीख मैं भी सबकी उम्मीदों पर न्योछावर होना चाहता हूँ
लेकिन अभी ढूँढ रहा हूँ सही पैमाना
विनती यही है जग से सब अपना सब कुछ वार दें
बिना किये कुछ उम्मीद किसी से,
लेकिन कब, कहाँ, किसको, और कितना सदा ज्ञात रहे इसका पैमाना
आज देखा मैंने बारिश का आना।
-अभिषेक तिवारी
गर्म जमीं पे उतर के वह मरहम सा सहलाना
पेड़ पौधों की वो ख़ुशी, पंछियों का वह चहचहाना
आज देखा मैंने बारिश का आना।
किसान के आँखों में चमक सी आ गयी
जो ये देखा कि बदली सी छा गयी
किया था बेसब्र हो कर जिसका इंतज़ार मानो वो घड़ी आ गयी
कुछ सुर्ख हवाएँ चलीं और मौसम में नमी छा गयी
उद्देश्य था इनका सबको कुछ दे जाना
आज देखा मैंने बारिश का आना।
सबकी उम्मीदें पूरी करती इन बूंदों को देखा
बड़ी मस्तमौला बड़ी अविरल हैं ये
न किसी से कोई उम्मीद ना ही है इनकी कोई इच्छा
एक ही ध्येय है औरों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर जाना
फिर भी न जाने क्या-क्या न सुनतीं ये जब भी गलत होता इनका पैमाना।
इन बूंदों से सीख मैं भी सबकी उम्मीदों पर न्योछावर होना चाहता हूँ
लेकिन अभी ढूँढ रहा हूँ सही पैमाना
विनती यही है जग से सब अपना सब कुछ वार दें
बिना किये कुछ उम्मीद किसी से,
लेकिन कब, कहाँ, किसको, और कितना सदा ज्ञात रहे इसका पैमाना
आज देखा मैंने बारिश का आना।
-अभिषेक तिवारी
Bahut Khoob Abhishek..
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